मेरी डरावनी छुट्टियाँ
मेरा नाम है, एली।
ये मेरी कहानी है; मेरी एकलौती और आख़री भूतों से मुलाक़ात की कहानी।
दरअसल, ये एक मज़ेदार कहानी है। मैं जितनी भी बार अपनी कहानी पड़ती हूँ, मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाती हूँ।
ये वो समय था जब मैं अपनी गर्मियों की छुट्टियाँ मना रही थी। असल में, ये मेरे लिए छुट्टियों के समय जैसा बिलकुल नहीं था क्योंकि इस बार मेरे माता-पिता ने कहीं दूर जाने के वजाए अपने माता-पिता यानी दादा-दादी के घर जाकर छुट्टियों को बिताने का फ़ैसला किया था। ये एक ऐसे गाँव की सैर थी जो हमारे शहर के पास भी नहीं था।
जब मैंने ये सुना तो मैंने सोचा, “वाह, क्या बात है! मेरी छुट्टियों में मेरे दादा-दादी के घर की सैर! इससे अच्छा तो और कुछ हो ही नहीं सकता था!” और हाँ, ये मेरा उत्साह नहीं था; ये वो बल्ब था जो अभी अभी फ्यूज़ हो गया था!
मैं इस बात की कल्पना नहीं कर पा रही थी कि इन छुट्टियों में कुछ मज़ा भी आने वाला है। ये कहा जा सकता है कि यह मेरे लिए निराशाजनक बात थी लेकिन आपको तो पता ही है, और कोई रास्ता भी नहीं था मेरे पास!
छुट्टियों में, दादा-दादी के घर जाने से पहले, मम्मी ने किसी पर्यटन स्थल को देखने का मन बनाया था ताकि ये मेरे लिए थोडा मज़ेदार हो सके। ये बहुत मज़ेदार था लेकिन बहुत समय तक नहीं। यह आश्चर्यजनक बात है लेकिन सच है क्योंकि मेरी छुट्टियाँ भी जानकारी और पढ़ाई से भरा था। मुझे संग्रहालय, चिड़ियाघर और चर्च से बहुत कुछ सीखने को मिले।
सच कहें तो, यह उस समय मेरे लिए बहुत उबाऊ था। आख़िरकार, पूरे दिन की सैर के बाद, रात के समय में, हमनें अगले दिन की यात्रा से पहले पास ही के होटल में रुकने का फ़ैसला किया। वो होटल भी किसी तारीफ़ का हक़दार नहीं था।
उस रात, मुझे वाकई लगा कि हर कोई गलत फ़ैसले कर रहा था और यह सब मेरे लिए निराशाजनक था। यह एहसास बहुत ही गुस्सा दिलाने वाला था। सच में, हद दर्ज़े का चिढ़ाने वाला था!
और, वहाँ तीन कमरे थे लेकिन एक ही सिर्फ सिंगल बेड! हद्द है! मुझे नहीं पता इसे सच में रहने की जगह कहूँ या नहीं। ये मेरे लिए बिलकुल गाँव जैसा ही था। मेरे माता-पिता अपने डिवाइस पर अपने-अपने काम में व्यस्त थे और मेरे पास अपने मोबाइल पर पुराने गेम खेलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था! ख़ैर, जब कोई और रास्ता नहीं बचा, मैंने सो जाने का फ़ैसला किया।
मुझे देर रात तक नींद नहीं आई क्योंकि मेरे दिमाग़ में अजीब जगह की वजह से अजीब ख़याल आ रहे थे। ज़्यादातर ख़याल मेरी बेकार हो चुकीं छुट्टियों के अफ़सोस के बारे में थे। मुझे इसपर अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था इसीलिए यही ख़याल आधी रात तक मेरे दिमाग़ में चलते रहे।
लेकिन, अचानक, मेरा ध्यान किसी ओर गया। या कहें कि मैंने अपने कमरे में किसी तरह की आहत सुनी लेकिन वहाँ कोई नहीं था। मेरे माता-पिता भी वहाँ नहीं थे। शायद वो बहार के कमरे में अपना काम कर रहे थे।
वो वाकई बहुत ठंडी रात थी, बिलकुल कड़ाके की ठण्ड वाली। मैंने आवाज़ को अनदेखा करने का फ़ैसला किया लेकिन वो एक आवाज़ मेरे लिए बिलकुल नई और आश्चर्यजनक थी। अब मेरे दिमाग़ में बेकार हो चुकीं छुट्टियों के अफ़सोस के बारे में कोई विचार नहीं थे, अब मेरा दिमाग़ इस आवाज़ की पहचान करने या अंदाज़ा लगाने में व्यस्त था। मैं इसका कारण जानने की कोशिश कर रही थी और मैं ऐसा जताने की कोशिश कर रही थी की ये सच नहीं है।
कुछ मिनट बीत गए, और फिर, मैंने फिर वो आवाज़ सुनी। इस बार मुझसे रुका नहीं गया और मैंने उठकर बत्ती जलाई और चारो ओर देखा।
आश्चर्यजनक रूप से, वहाँ कोई नहीं था। और फिर, वो आवाज़ फिर से सुनाई दी।
अब, इस आवाज़ ने मुझे डराना शुरू कर दिया था। मैंने इसे अनसुना कर देने का फ़ैसला किया और मैंने खुदको कंबल से ढक लिया। वो आवाज़ कमरे के चारो और गूँज रही थी और मैं बहुत आश्चर्य में थी कि मेरे माता-पिता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी! ना ही कोई शब्द और ना ही कोई क्रिया!
मैंने आवाज़ को अनदेखा कर दिया, और, हर बार आवाज़ के साथ मेरा डर और भी जटिल होता गया। आख़िरकार, आवाज़ वास्तविक अनुभव में बदल गया। मैंने किसी के स्पर्श को महसूस किया! मुझे याद है वो मेरे पैरो पर कोमल स्पर्श था। मैंने फिर भी इसे अनदेखा किया या कम से कम ऐसा करने की कोशिश की।
फिर, कुछ सेकंड बाद, मैंने साफ़ तौर पर महसूस किया कि किसी के हाथ ने मेरे सर को छुआ! जैसे कोई मेरा सर छू रहा हो!
हे भगवान्! ये मेरे साथ क्या हो रहा था और फिर भी मैं नहीं चिल्लाई। असल में, मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन वो समय मेरी बहादुरी दिखने का था। अब वो सपने जैसी स्थिति मेरे लिए हक़ीकत में बदल रही थी।
अब, मैं साफ़ तौर पर सुन सकती थी कि कोई मेरे मेरे पास बैठे कुछ फुसफुसा रहा था। असल में, मेरे सपने का भूत मुझपर काबू करने की कोशिश कर रहा था! मैंने कंबल को ज़ोर से पकड़ा और अपने चारो और कस के दबा लिया ताकि कोई भी अन्दर ना आ सके।
कुछ सेकंड बीत गए और फिर कोई आवाज़ या स्पर्श नहीं महसूस हुआ। मैंने सोचा कि मेरा सपना ख़त्म हो गया। मैंने चैन की सांस ली और फिर फ़ैसला किया कि मैं ये किसी को नहीं बताऊँगी। कोई एक होटल के कमरे में भूत की आशा कैसे कर सकता है?
मैंने कुछ सच्ची भूतों की कहानियाँ सुनी थीं कि ऐसे कमरों में भूत घुमते हैं तो मुझे भरोसा हो गया कि मैंने सपने में एक होटल के कमरे वाले भूत से मुलाक़ात की थी। अब मैं अपने सपने के बारे में थोड़ी उलझन में थी लेकिन पाँच मिनट बाद, मैंने सोचा कि मेरे सपने का अंत हो गया था! वाह, आख़िरकार वो डरावना और बकवास सपना ख़त्म हो गया! लेकिन नहीं। वो अंत नहीं था!
कुछ मिनट बाद, मैंने महसूस किया कि कोई मेरा कंबल खीचने की कोशिश कर रहा था। मैंने स्पर्श महसूस किया और फिर मैंने दाईं ओर से खींचने के दबाव को महसूस किया। कोई मेरे कंबल में घुसने की कोशिश कर रहा था!
वो अब मेरे लिए बहुत ज़्यादा डरावना होता जा रहा था और मुझे महसूस हुआ कि मुझे अब चिल्लाना चाहिएँ! लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि अब मैं सोच रही थी कि ये एक बहुत ही सच्चा लगने वाला सपना था। मैंने अपने कंबल को पकडे रखने के लिए संघर्ष जारी रखा और फिर मैंने जितना हो सका उतने दबाव के साथ कंबल को अपने चारो ओर दबा लिया ताकि कोई इसे खींच न सके।
ये बिलकुल ऐसा था जैसे मेरी सपने के भूत से असलियत में मुलाक़ात हो गई हो। मैंने संघर्ष जारी रखा और आख़िरकार सपनो का भूत भाग गया! मैंने हलके क़दमों की आहट सुनी। सपनो का भूत भाग गया और आख़िरकार, मेरा सपना ख़त्म हो गया! संघर्ष से थक के फिर मुझे नींद आ गई।
अगली सुबह, मैं उठी। मैं उस डरावने अनुभव के बारे में लगभग भूल गई थी लेकिन मुझे लगा कि सबके व्यवहार में कुछ अंतर था। मेरे माता-पिता मुझे देख रहे थे और, आश्चर्यजनक रूप से, वो मुस्कुरा रहे थे। असल में, वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे।
बिना किसी कारण के?
नहीं। बिलकुल उनके पास कारण था।
वो मुस्कुरा रहे थे क्योंकि वो डरावना अनुभव मेरा सपना नहीं था। उस कमरे में कुछ चूहे थे जो आवाज़ कर रहे थे और मैंने दो बार इसे उठकर देखा भी था इसीलिए मेरे पापा कमरे में यह देखने के लिए आये कि क्या मैं सही हूँ या नहीं। ख़ैर, अब मैं बता दूँ, वही मेरे सपनो के भूत का एहसास था!
पापा को लगा कि मुझे डर लग रहा था इसीलिए उन्होंने मुझे जगाने की कोशिश की लेकिन जब उन्हें महसूस हुआ कि ऐसा करना मुमकिन नहीं है तो वो अपने कमरे में वापिस चले गए। मेरे माता-पिता को उस दिन कमरे के बहार सोना पड़ा!
ये घटना अविश्वसनीय थी। मुझे बिलकुल भरोसा नहीं हुआ कि कैसे मेरी कल्पना ने मुझे ये महसूस कराया कि ये सब एक डरावना अनुभव था! मेरा माँ ने मुझे इसके बारे में बताया और फिर मेरे पास अपने आश्चर्य को व्यक्त करने के लिए कोई शब्द ही नहीं बचे थे!
इस घटना ने मेरी रात को सच में बहुत ही डरावना बना दिया था और मैं इस घटना को कभी भी भूल नहीं पाऊँगी। फिर, हम दादा-दादी के घर गए। मेरी दादी ने इसके बारे में सुना और फिर उन्होंने मुझसे बात की।
उन्होंने कहा, “डर जैसी कोई चीज़ नहीं होती। ये सब हमारी कल्पना की सीमाओं की बात है। तुम्हारी कल्पना ने एक बहुत ही अच्छी कहानी बनाई। तुम्हारे विचार ही इसका कारण थे।“
उन्होंने कहा, “तुम्हें अपने माता-पिता पर गुस्सा था और इसीलिए तुम सकारात्मत कल्पना नहीं कर सकीं। गुस्से में कुछ भी ठीक से नहीं हो सकता। इसीलिए ऐसे ही किसी भी बात पर गुस्सा नहीं करना चाहिएँ जो तुम्हारे समझ से बहार हो। और अगर कोई ऐसा करता है तो कल्पना ख़ुद ही चारो ओर नकारात्मक स्थिति बना देगी।”
वो मेरे लिए उस समय एक भाषण की तरह था लेकिन मुझे वाकई समझ में आया कि ये सब बस मेरे दिमाग़ की मन-घडंत कहानी थी। ये सपना नहीं था! ये मेरी वास्तवित कल्पना थी जिसने स्थिति और लोगो को वास्तविकता से बिलकुल अलग कर दिया।
मुझे एहसास हुआ कि गुस्से ने मुझे पूरी रात जगाए रखा। अब मैंने फ़ैसला किया कि इस रात मैं देर तक नहीं जागुँगी। मैंने अपनी पूरी छुट्टियाँ मज़े से बिताईं। और अब अगर दुबारा दादा-दादी के घर जाकर छुट्टियाँ बिताने का फ़ैसला किया जायेगा तो मुझे अच्छा लगेगा।
लेकिन, बस एक ही प्रार्थना है कि काश अब वहाँ कोई चूहे ना हों!
Interesting story. It is True as our fiction as our reaction
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Thanks for reading. I appreciate your response.
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